जीवन की दौड़-धूप में
जीवन की दौड़-धूप में जीवन की दौड़-धूप में कब वक्त मिला,कभी बैठकर सोचा, क्या पाया, क्या खोया,हर रोज़ की उलझन में उलझा रहा मन,क्या सही, क्या गलत, कभी नहीं तौला। जब आँखें खुलीं, देखा चारों ओर भीड़ थी,हर कोई उलझा था अपनी-अपनी चिंता में,मंजिलें अनजानी, राहें थीं धुंधली,चाहतें तो थीं, पर मंज़र धुंधले थे। हर … Read more