प्रेम की ज्योति

प्रेम की ज्योति


प्रेम की ज्योति जलाना लेकिन,
उसमें खुद को भुलाना क्या,
निश्छल मन से देना सब कुछ,
पर कुछ पाने की चाहत क्या।

सच्चाई का दीपक बनना,
पर दिखावा करके चमकना क्या,
मन की गहराई में डूबकर,
दूसरों को उलझाना क्या।

फूलों की सुगंध बिखेरना,
पर कांटे बनकर चुभना क्या,
प्रेम का पावन गीत गाना,
पर उसमें छल छुपाना क्या।

त्याग का मधुर फल चखना,
उसमें कड़वाहट ढूँढ़ना क्या,
दिल से दिल की राह पकड़ना,
पर स्वार्थ का साथ निभाना क्या!


Leave a Comment