न तुम चुप हो, न मैं चुप हूँ

न तुम चुप हो, न मैं चुप हूँ


न तुम चुप हो, न मैं चुप हूँ,

मगर रात्रि बीच में ढल रही है।

दिखाई पड़े चाँद की किरणें,

वही चमकें हमारे ऊपर भी,

हवा बह रही है धीरे-धीरे,

न रुके चलें ये सुकून भरे लम्हे।

न तुम चुप हो, न मैं चुप हूँ,

मगर रात्रि बीच में ढल रही है।

तुम यहाँ, मैं वहाँ, बिछड़े दो दिल,

आह! कितना लंबा यह सफर है,

पार किए मैंने कई दूरी,

मिले जो रास्ते, सब लगे प्यारे,

मगर जो रास्ता तुम्हारी ओर है,

यही मुझे बहुत खल रहा है।

न तुम चुप हो, न मैं चुप हूँ,

मगर रात्रि बीच में ढल रही है।

नहीं रास्ते ने कोई बाधा डाली,

तुम्हें देखे बिना रात बीती,

स्वर में गूँजती एक नई धुन,

नहीं प्रेम की राह में कोई दीवार,

दीप जल चुके, चाँद बुझ चुका,

मगर दिल की आग अभी भी जल रही है।

न तुम चुप हो, न मैं चुप हूँ,

मगर रात्रि बीच में ढल रही है।

चाहे कितनी भी कोशिश की मैंने,

तुम्हारे बगैर हर लम्हा अधूरा है,

दिल में लहरें उठती हैं अब भी,

सपनों की दुनिया में ये धड़कनें चल रही हैं।

न तुम चुप हो, न मैं चुप हूँ,

मगर रात्रि बीच में ढल रही है।


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