अडिग प्राण: धरा का गौरव
अडिग प्राण: धरा का गौरव मेरे पर्वत! ओ अडिग प्राण,तू है धरती का दिव्य गान।अचल, अभेद्य, तू अनंत,धरा की चिर धरोहर, शांत। युगों से खड़ा तू मौन, महान,तू देख रहा है समय का ज्ञान।तूने सहा कितना तूफान,फिर भी खड़ा है, अडिग प्राण। ओ ऊँचाई के उस सरताज,तू है धरा का गौरव साज।तूने देखा हर ऋतु … Read more