अडिग प्राण: धरा का गौरव

अडिग प्राण: धरा का गौरव मेरे पर्वत! ओ अडिग प्राण,तू है धरती का दिव्य गान।अचल, अभेद्य, तू अनंत,धरा की चिर धरोहर, शांत। युगों से खड़ा तू मौन, महान,तू देख रहा है समय का ज्ञान।तूने सहा कितना तूफान,फिर भी खड़ा है, अडिग प्राण। ओ ऊँचाई के उस सरताज,तू है धरा का गौरव साज।तूने देखा हर ऋतु … Read more

नवीन दिशा की ओर

नवीन दिशा की ओर सपनों की किरण जगाकर, चल नवीन दिशा की ओर, संघर्षों से न घबराकर, तू अपनी राहें खोजता चल। अंधकार में प्रकाश बन, तू बन जा दीपक अनमोल, हर बंधन को तोड़कर, तू स्वतंत्रता की सांस लेता चल। दृढ़ संकल्प को लेकर, मंजिल की ओर कदम बढ़ा, हर बाधा को पार कर, … Read more