हाहाकार की रात

हाहाकार की रात


घने बादलों की गर्जन में
झूम उठा सारा संसार,
पवन में कंपित कण-कण में
छिपा है हाहाकार।

धरती का हृदय धधक उठा,
हर कोने में आग की लहर,
सपनों का संसार छूट गया,
रह गई सिर्फ़ अश्रुओं की डगर।

वज्र की चोट से जाग उठे
शब्द मौन, धैर्य सजीव,
जीवन की नई किरण में
दिखी एक आशा, सजीव।

विप्लव की इस रणभूमि में
मिटेगा कल का अंधकार,
हर पत्ता, हर कली खिल उठेगी
फिर से देखेगी नए जीवन का प्रहार।

ओ बादलों के वीर!
तूफानों से लड़ने को तैयार,
धरती का हर कण पुकारेगा
तुझे नवजीवन का अधिकार।


Leave a Comment