सावन की रातें
अब रातें बदलीं, चाँदनी बिखरी,
रूप समाना, रुत नई आई।
धरती की ठंडी साँसों ने,
मुझे भी ठंडक दी अपनी छाँव में।
जब चाँदनी की चादर बिछी,
रात के अंधेरे में चमकने लगी।
हवा ने बहकी जब यह प्यारी,
सपनों के द्वार खोले अचानक।
फूलों की खुशबू ने सँग लाया,
रात की ख़ामोशी में कुछ खास बात।
अब रातें बदलीं, चाँदनी बिखरी,
रूप समाना, रुत नई आई।
सितारों ने जब रौशनी बिखेरी,
मन के कोनों में लहर सी उठी।
चाँद के नूर से आलोकित,
रात की चुप्प में गूंजने लगी।
जैसे चाँद की चाँदनी बसी,
सपनों की दुनियां में घर करने लगी।
यह रात भी अब खास हो गई,
चाँदनी से भरी, चाँदनी से सुनी।
अब रातें बदलीं, चाँदनी बिखरी,
रूप समाना, रुत नई आई।