रौशनी हूं मैं…
अंधकार की चीरती चुप्पी, उजाले की आवाज हूं मैं,
हर सुबह की किरण में, नई उम्मीद का आगाज हूं मैं।
चाँदनी रात का नूर, सूरज की तपिश हूं मैं,
हर दीप की लौ में जलती, जीवन की मशाल हूं मैं।
गहरे सागर की गहराई में भी उतरती हूं मैं,
हर अंधेरे को मिटाकर, नई दिशा दिखाती हूं मैं।
ज्ञान की दीपशिखा, मन की शक्ति हूं मैं,
हर बाधा को पार कर, लक्ष्य का प्रकाश हूं मैं।
कभी दीपावली की जगमग, कभी दिए की सौम्यता हूं मैं,
हर ह्रदय में बसने वाली, अनंत रौशनी हूं मैं।
बिन मेरे नहीं कोई राह, न कोई मंज़िल यहां,
व्यर्थ न समझो मुझको, रौशनी हूं मैं…रौशनी हूं मैं…