रात की राह

रात की राह


रात की चादर कहीं न बिछे,

मंजिल भी तो दूर नहीं –

यह सोच थका यात्री भी जल्दी-जल्दी बढ़ता है!

दिन की रौशनी धीरे-धीरे ढलती है!

बच्चे उम्मीद में होंगे,

आसमान की ओर देख रहे होंगे –

यह नज़र के झिलमिलाते तारे कितने प्यारे हैं!

दिन की रौशनी धीरे-धीरे ढलती है!

मुझसे मिलने को कौन बेताब?

मैं किसके लिए व्यस्त? –

यह सवाल मुझे थकाता है, दिल में आशा जगाता है!

दिन की रौशनी धीरे-धीरे ढलती है!


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