मैं हर खुशी पर खुशी से लुटा, इसमें मुझे कुछ भी नहीं छुपा।

मैं हर खुशी पर खुशी से लुटा, इसमें मुझे कुछ भी नहीं छुपा।


जिन्होंने फूलों के जिंदादिल रंगों में
रूप का पहला इत्र छिड़का,
जिन्होंने चिरपंखों की हल्की लहरों में
सपनों की बुनाई की छाँव डाली,
आँखें जिनकी उन लहरों को सहेजतीं
जिन्होंने जवानी की नयी राहें खोलीं,
मैं हर खुशी पर खुशी से लुटा, इसमें मुझे कुछ भी नहीं छुपा।

मन में घटा या छाए बादल,
ज़ुबां पर हमेशा लहराए आंसू,
दुनिया की चकाचौंध में
कभी-कभी रहती बेईमानी की कमी,
मेरे पूर्वजों ने सच्चाई की राह चुनी,
उनकी विरासत, खुद को भुला दी,
मैं हर खुशी पर खुशी से लुटा, इसमें मुझे कुछ भी नहीं छुपा।

जब सफर की राह पर चला मैंने
अनुभव से पथ को पहचान,
अपनी छोटी सी गलती से सीखा मैंने
दूसरों के सच्चे अनुभव से हजार बातें,
जो दिल में गूंजता, वो ही सच्चाई मानी,
आज मैं नक्शों की धुंधल में नहीं खोया,
मैं हर खुशी पर खुशी से लुटा, इसमें मुझे कुछ भी नहीं छुपा।

मधुरता की गहराई में जाकर
सुख और दुख का समन्वय किया,
जीवन की समाप्ति के कगार पर
सुख को भी पीछे छोड़ा,
जहाँ राग की तीव्रता अधिक हो,
वहां भी आवाज़ का कोई नशा नहीं है,
मैं हर खुशी पर खुशी से लुटा, इसमें मुझे कुछ भी नहीं छुपा।


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