क्षण भर का प्रेम

क्षण भर का प्रेम


रात्रि के सन्नाटे में अचानक उठकर,

चाँदनी की चादर में मिलाकर,

तुमने क्यों मेरे सपनों में अपना दिल लगा दिया था?

क्षण भर को क्यों प्रेम किया था?

‘यह प्रेम का अधिकार कहाँ से लाया’

सिर्फ यही मैं सोच पाया –

मेरे नयनों में अपनी नयनों का तुमने रंग भर दिया था!

क्षण भर को क्यों प्रेम किया था?

वह पल अमर हो गया जीवन में,

आज भी जो गीत गाता मन में –

यह प्रतिध्वनि उसकी जो तुम्हारे लिवास ने उर में बसी थी!

क्षण भर को क्यों प्रेम किया था?


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