रचनाओं की मधुर धारा

रचनाओं की मधुर धारा


मेरे मन की धरती पर आज बिखराऊँगा रंगीली चाशनी,

प्रियतम, तेरे ही हाथों से बनाऊँगा इसे स्वप्निल प्याली,

पहले तेरी आराधना करूँगा, फिर इसको सबको दिखाऊँगा,

सर्वप्रथम तेरा स्वागत करती मेरी रचनाओं की रसधार।

तेरे प्यार की अगन से, साकार करूँगा यह अमृत प्याला,

एक कदम से साकी बन, नाचूँगा मैं मधुर विचारों का प्याला,

जीवन की मिठास तुझे अर्पण कर दूँगा, बिना शर्त की उम्मीद,

आज तुझ पर समर्पित कर दूँगा मैं सारी भावनाओं की सरिता।

प्रियतम, तू ही मेरी कल्पना है, मैं तेरा शीतल संगी,

अपने मन की गहराइयों से भरकर तू बन जाता है सजीव रंगी,

मैं तुझको हर पल महसूस करूँ, तू मुझसे आत्मा की तरह जुड़ता,

दोनों मिलकर बनाते हैं आज अद्भुत कल्पनाओं का संसार।

भावनाओं की पंखुडियों से खींच लाया हूँ यह कलात्मक प्याला,

कवि बनकर लाया हूँ मैं, भरकर कविता की सुंदर चाशनी,

कभी न होगा खाली, चाहे कितनी बार पिओ, कितनी बार ढलूँ,

पाठक हैं पीनेवाले, मेरी किताब है सजीव भावनाओं की कुटीर।

मधुर भावनाओं की सुगंधित नित्य संजीवनी लाया हूँ प्याला,

भरता हूँ इसे मन के सोते से, तृप्त करता हूँ आत्मा की प्यासा,

कल्पना के हाथों से इसे पी जाता हूँ, खुद में ही साकी बन जाता हूँ,

मैं ही साकी हूँ, प्याला हूँ, और यही मेरी भावनाओं की कविता।

रचना के नगर में चलने को है उत्सुक पाठक हर बार,

‘कहाँ से शुरू करूँ?’ असमंजस में है वह भावुक और प्यारा,

विभिन्न पथ बताते हैं सब पर मैं यह बताता हूँ –

‘एक राह पकड़ो, चलो, पा लोगे रचनाओं की मधुरता।

चलते-चलते कितनी रचनाएँ, हाय, मैंने संजो लीं,

‘अभी दूर है’, कहते हैं पथिक, पर सबका मार्ग बतलानेवाला,

हिम्मत न बढ़े, साहस न हो आगे बढ़ने का, वहीं रुके रहो,

भावनाओं की संसार से दूर खड़ा है प्याला, सोचा करो।

मुख से तू निरंतर कहता जा शब्दों की रंगीनी, मधुरता,

हाथों में अनुभव कर, प्याली का सुंदर स्वरूप साकार,

ध्यान में रख सुमधुर साक्षात्कार की छवि, निरंतर गा,

और बढ़ता चल, पथिक, न लगे तेरे पास दूर, रचनाओं का प्याला।

रचनाओं की लालसा जब बन जाए सजीव भावनाओं का प्याला,

अधरों की उत्कंठा में जब चमकने लगे कविता का नूर,

जब साकार हो जाए हर कल्पना, हर भावना साकार,

रहे न केवल कविता, प्याला, साकी, पाओगे सच में रचनाओं का संसार।


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