खामोशी की बातें

खामोशी की बातें


बैठ अकेला सोचता हूं,

बीते पलों को तौलता हूं,

अनजानी यादों की छाया में,

दिल के दर्द को समेटता हूं,

ऐसे मैं मन को समझाता हूं।

न दर्द को मैं दबाता हूं,

न मरहम की आस लगाता हूं,

अपनी ही आग में जल कर,

आंसू से दिल को भिगोता हूं,

ऐसे मैं मन को बहलाता हूं।

आहें उठती हैं दिल से,

चुपके से बह जाती हैं,

किसी से कुछ कहे बिना,

खुद ही खुद को सहलाता हूं,

ऐसे मैं मन को बहलाता हूं।


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